विधवा-व्यथा

poem on international widows day

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सुन मेरी प्यारी छोटी बहना,

तुझसे मुझको आज है कहना,

आशीष यही नव-विवाह का है,

तू सदा सुहागिन रहना।


क्या याद तुम्हें भी है वो सब,

बचपन के दिन आज़ादी के,

जब हम भी खेल खेलते थे,

गुड्डे गुड़ियों की शादी के।


तुम भी तो मेरी गुड़िया थी,

दुनिया में सबसे प्यारी-सी,

सपने देखे थे मैंने ये,

करूंगी सब तैयारी भी।


सजाऊंगी सवांरूगी,

तुमको हाथों से अपने,

हल्दी उबटन मेहंदी कुमकुम,

देखे थे बस ये सपने।


कुछ कर न सकी मैं ये सब तो,

तू माफी मुझको दे दे,

हाथों में बेड़ी समाज की,

इससे मुक्ति कोई दे।


कुछ कहते मैं अपशकुनी हूँ,

कुछ कहते मुझको डायन,

कुछ कहते कि अछूत हूँ मैं,

कुछ कहते मुझे अभागन।


कोई बतला दे कि कौन हूँ मैं,

गलती इसमें मेरी क्या,

नियति में जो कुछ भी लिखा,

होकर तो वही रहेगा।


जीवन का दुख है मुझे मिला,

उसपे भी इतने ताने !!

क्या खत्म होंगे ये हृदयभेदी से,

रीति रिवाज़ पुराने ??


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