स्वामी विवेकानंद

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कलकत्ता सन अट्ठारह सौ तिरसठ, जन्म लिया एक ऐसा बालक,

मात-पिता की बगिया झूमी, धन्य हो गयी भारत भूमि,


बचपन में जो नटखट-चंचल, नाम था जिनका नरेंद्र नाथ,

मात-पिता के संस्कारों से, खुले ज्ञान के दिव्य कपाट,


मिली गुरु की अनुपम छाया, हुआ ज्ञान का परमानंद,

विवेक से आनंद मिला जब, नरेंद्र हो गए विवेकानंद,


उपनिषद औ वेदान्त का दर्शन, समूर्ण विश्व को करवाया,

शिकागो की महासभा में,परचम भारत का लहराया,


विश्वबंधुत्व का भाव बताकर, दिलों को सबके जीत लिया,

मातृभूमि के स्वाभिमान को, विश्व पटल पर अमर किया,


अपने ओजपूर्ण भाषण से, प्रेरित किया युवाओं को,

स्वामी जी  के आदर्शों ने, मार्ग दिखाया है हमको,


उनतालीस की अल्पायु में, ज्ञान पीढ़ियों को दे डाला,

नमन तुम्हें ऐ संत, विचारक, मातृभूमि का कर्ज उतारा।


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