मुकाम हासिल है तो क्या, सफ़र नहीं तो कुछ नहीं,
मिटा दे फ़ासलों को जो, डगर नहीं तो कुछ नहीं,
इमारत है ऊँची मकान की, यहाँ मस्तियों की बहार हैं,
है नदिया भी मौजों से भरी, ख़ुमारियाँ भी हज़ार हैं,
मगर हवाएं प्यार की, अगर नहीं तो कुछ नहीं,
मिटा दे फ़ासलों को जो, डगर नहीं तो कुछ नहीं,
है लंबा सफ़र ज़िंदगानी का, ये चलना ये रुकना है लाज़मी,
मगर राह में तू ठहर क्यूँ गया, ये रफ़्तार तेरी क्यूँ थमी,
रुका पानी दरिया का भी कहे, लहर नहीं तो कुछ नहीं,
मिटा दे फ़ासलों को जो, डगर नहीं तो कुछ नहीं।