राज एक होनहार लड़का था जो पढ़ाई के साथ-साथ हर गतिविधि में अव्वल रहता था। वह विद्यालय के बच्चों के लिए एक आदर्श था और शिक्षकगण भी उससे खुश रहते थे क्योंकि वह शिक्षकों का बहुत सम्मान करता था।
कुछ दिनों पहले जिला स्तर की भाषण प्रतियोगिता में राज ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसने प्रतियोगिता में “बड़ों का सम्मान” विषय पर बहुत सुंदर विचार रखे, जिसे सुनकर सभी शिक्षकों ने उसकी खूब सराहना की। अगले दिन विद्यालय की प्रधानाध्यापिका जी ने राज के माता-पिता को आमंत्रित किया। राज के माता-पिता जब विद्यालय आए तो मैडम ने उसकी तारीफों के पुल बांध दिए। लेकिन सब सुनकर भी माता-पिता के चेहरों पर एक फीकी मुस्कान थी। मैडम ने इस बात को महसूस किया और उनसे पूछा “क्या आप खुश नहीं हैं?”
माता-पिता ने दुखी मन से कहा “हम राज की उपलब्धियों से खुश हैं, लेकिन हम आपको कुछ बताना चाहते हैं।” मैडम ने भी जिज्ञासा जताई। तब राज के पिता बोले “राज अपनी उपलब्धियों के कारण घमंडी हो गया है और वह घर में बड़ों का बिल्कुल सम्मान नहीं करता। वह अपने छोटे भाई-बहनों को हमेशा हीन महसूस कराता है।”
मैडम ने जब यह सब सुना तो उनके होश उड़ गए। इस पर राज की माँ ने कहा “हम जानते हैं इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है इसलिए हम चाहते हैं कि आप हमारे घर आएं और स्वयं ही सब देखें। मैडम ने सहमति जताई और अगले ही रविवार को वे राज के घर पहुँच गईं। घर में प्रवेश करने से पहले ही उन्होंने कई आवाजें सुनीं। उन्होंने सुना कि कैसे राज अपने पिता व दादा जी से अशिष्टता का व्यवहार कर रहा था और उनकी कोई बात नहीं सुन रहा था। उसने अपनी छोटी बहन को बिना बात के मारा। अपने छोटे भाई को तो वह हर बात पर नीचा दिखा रहा था।
राज के इस दोहरे व्यक्तित्व को देखकर मैडम हतप्रभ थीं। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि “बड़ों का सम्मान” विषय पर भाषण देने वाला राज अपने घर में ऐसा व्यवहार करता है। मैडम ने सोच लिया कि उन्हें क्या करना है।
अगले दिन उन्होंने राज को अपने ऑफिस में बुलाया और उसको बहुत-सी बातें समझायीं। उन्होंने शिक्षा और शिक्षित होने का असली अर्थ बताया और कहा “राज, शिक्षित व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान यही है कि वो अपने बड़ों और छोटों के साथ कैसे व्यवहार करता है, उनसे कैसे बात करता है। यदि उसका व्यवहार अच्छा नहीं है तो उसकी सभी उपलब्धियाँ व्यर्थ हैं। व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसका घमंड है। घमंडी व्यक्ति का कोई सच्चा मित्र नहीं बन सकता और उसका अपना परिवार भी एक दिन उसका साथ छोड़ देता है।”
मैडम की बातें सुनकर राज को समझते देर न लगी और उसे अपनी गलती का एहसास हो गया।उसकी आँखों से अश्रुधार बह निकली। उसने मैडम से क्षमा मांगी और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करने का प्रण लिया। प्रधानाचार्या जी ने भी उसके सर पर स्नेह का हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया।