लाल छटा गोधूलि की लेकर, चारों प्रहर बिताए रैन,
स्वामी के आगमन को जैसे, द्वार टिके वनिता के नैन,
सूखी धरती है अति व्याकुल, कैसे कम होगा ये ताप,
जल के कुछ कण ही मिल जाएं, वर्षा से जो ना हो मिलाप,
आश्रयहीन निरंतर खोजे, सिर पर अपने बस एक हाथ,
चुभते शूल हृदय में उसके, सुनता जब भी शब्द अनाथ,
भेजा जिसको तिलक लगाकर, राष्ट्र सुरक्षा के रण में,
एकाकी में बाट जोहते, मातु-पिता मन ही मन में,
नायक देखे राह विजय की, याचक मांगे न्याय का पल,
शीघ्र मिले गंतव्य पथिक को, प्यासे को मिल जाए जल,
पुष्प पुकारे भ्रमर को नित क्षण, रोगी को औषधि की आस,
प्रकृति चाहती स्वच्छ समन्वय, मानव को है ज्ञान की प्यास,
स्वप्न देखता मेरा मन भी, रह ना जाए कोई अशिक्षित,
अग्रिम पीढ़ी का मन मंदिर, संस्कारों से पूर्ण सुसज्जित,
सजग-सचेत हों जब नर-नारी, कर ना सकेगा कोई भ्रमित,
रहे संतुलन इस समाज में, ना ही अल्पता, ना आधिक्य,
हे प्रभु सुन लो विनती हमारी, आशाएं जो नैनन में,
मेरी प्रतीक्षा का भी अंत हो, छोटे से इस जीवन में ।।