परवाह

parwah-short story about family relationships

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शुक्रवार की शाम थी, ऑफिस में काम भी कम था। चिराग ऑफिस से जल्दी निकल गया और उसने सोचा आज घर जल्दी पहुँचकर सबको सरप्राइज़ दिया जाए। रास्ते से उसने सबके लिए आइसक्रीम भी ले ली। घर पहुँचकर रोज की तरह बाइक का हॉर्न बजाकर वो मेन गेट खुलने का इंतजार करने लगा। जब काफी देर हो गई तो उसने बाइक से उतरकर अपने घर की घंटी बजाई। कुछ देर बाद मकान मालिक वर्माजी पहली मंजिल से उतरकर आए और गेट खोला। चिराग को हैरानी हुई कि गेट खोलने उसकी पत्नी या बेटा क्यों नहीं आया। वर्माजी को धन्यवाद करते हुए उसने बाइक अंदर लगाई और अपने दरवाजे पर दस्तक देने लगा। ये देखकर मकान मालिक चिराग से बोले “रजनी थोड़ी देर पहले ही बच्चों के साथ बाहर निकली है, आपको नहीं बताया क्या।” चिराग को इस बात का पता नहीं था। उसने कुछ नहीं कहा। वर्माजी बोले, “ऊपर आ जाइए, जब तक सब वापस आयेंगे, अपनी एक-एक कप चाय हो जायेगी।” चिराग बोला “धन्यवाद सर, आज ऑफिस में कई बार चाय हो गई है। मैं थोड़ा फ्रेश हो लेता हूँ।” ये कहकर उसने अपने बैग से दूसरी चाभी निकाली और दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। 

चिराग को थोड़ा अजीब लग रहा था क्योंकि रजनी हमेशा उसे बता कर ही कहीं बाहर जाती थी। उसके मन में आशंकाएं उठने लगीं कि कहीं उसका बेटा कुशल बीमार तो नहीं हो गया, या कहीं रजनी की दोस्त के घर में कोई दिक्कत तो नहीं हुई। उसने तुरंत रजनी को फोन लगाया, लेकिन दो-तीन बार पूरी कॉल जाने के बाद भी जब फोन नहीं उठा तो वो थोड़ा घबरा गया। वो दौड़कर सीढ़ियों से ऊपर गया और वर्माजी से पूछा “सर रजनी आपको कुछ बोलकर गई थी क्या? वैसे तो हमेशा बता कर ही जाती है। कहीं कुशल बीमार तो नहीं है।” चिराग को चिंतित देखकर वर्माजी ने उसे तसल्ली दिलाई और बोले, “शायद बच्चों को घुमाने गई होगी, आ जायेगी। चिंता मत करिए, पानी पीजिए। जब वो दोनों कैब में बैठ रहे थे तो मैं बालकनी में ही था, लेकिन मैंने टोकना सही नहीं समझा।” इतने में चिराग का मोबाइल बजा और जब उसने देखा कि रजनी का फोन है तो उसकी आधी चिंता दूर हो गई। चिराग ने कॉल उठाया और इससे पहले कि वो कुछ बोलता, उधर से रजनी की गुस्से भरी आवाज आई, “हम लोग ठीक हैं, ज्यादा परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। बस में बैठे हैं, आगरा जा रहे हैं। कुछ देर पहले ही मैंने नाश्ता और चाय बना कर रखा है, गरम करके खा लेना।” इतना कहकर उसने फोन काट दिया। चिराग के मन को बहुत धक्का लगा क्योंकि रजनी गुस्से में अपने मायके जा रही थी। वर्माजी के सामने उसने खुद को सम्हाला और बहाना बनाते हुए बोला “रजनी का फोन था, सासूजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई इसलिए उसे जल्दबाजी में निकलना पड़ा।” ये कहकर वो नीचे अपने घर में वापस आ गया। 

रजनी के इस कदम के बारे में चिराग सपने में भी नहीं सोच सकता था क्योंकि रजनी बहुत समझदार और जुझारू व्यक्तित्व की महिला थी। चिराग के दिमाग में कई सवाल घूमने लगे, “वो हर बात मुझे बताती है और बड़ी से बड़ी नाराज़गी को भी जाहिर कर देती है, तो आख़िर ऐसी क्या बात हो गई जो उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा? क्या मैंने कोई बड़ी गलती कर दी है जिसका मुझे भी अंदाज़ा नहीं है? पता नहीं कैसे बस में बैठी होगी और कैसे वो अकेले कुशल को सम्हाल रही होगी? गुस्से में उसने अपने पास कुछ पैसे रखे या नहीं?” उसका दिल घबरा रहा था और वो सर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया। उसने अपने ससुरजी को फोन लगाने के लिए मोबाइल उठाया। तभी अचानक उसकी नज़र टेबल पर रखे एक बड़े से लिफ़ाफ़े पर पड़ी। लिफ़ाफ़ा खोला तो उसमें बहुत सुंदर डिजाइन का एक निमंत्रण पत्र था जिसमें घर की सुंदर तस्वीरें भी छपी थीं। निमंत्रण पत्र को पढ़ते ही उसे रजनी की नाराज़गी का कारण समझ में आ गया। ये निमंत्रण अमित के गृह प्रवेश का था जो रजनी के कॉलेज में ऑफिस असिस्टेंट था। अमित रजनी का बहुत सम्मान करता था और अपने हर छोटे बड़े कार्यक्रम में निमंत्रण देने घर पर आता था। 

चिराग समझ गया कि इस निमंत्रण को पढ़ने के बाद रजनी के मन पर क्या गुजरी होगी। कई दिनों से घर में चल रही बातें उसके दिमाग में घूमने लगीं। रजनी का हमेशा से मन था कि अपना घर हो, गाड़ी हो। इस बात पर दोनों में कई बार चर्चा हो चुकी थी। लेकिन चिराग को ये समस्या कभी बहुत बड़ी नहीं लगी क्योंकि वो अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट था और उसे किसी बात की कमी नहीं लगती थी। उसने कभी रजनी को मना तो नहीं किया लेकिन सारी बातें सुनकर वो बस रजनी की हाँ में हाँ मिला देता था और बाद में भूल जाता था। आज जब रजनी चली गई तो उसे बहुत पछ्तावा होने लगा। मन ही मन वो खुद को कोसने लगा, “रजनी कहती रही लेकिन मैंने ही उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। उसकी मांग अकेले उसकी खुशी के लिए तो नहीं थी। वो सही कह रही थी कि आख़िर कब तक हम इस किराए के मकान में रहेंगे। आख़िर दोनों ही अच्छा कमाते हैं, बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ता है और हमारी बचत भी अच्छी है तो अपना घर और गाड़ी लेने में क्या दिक्कत है। वो कहती रही कि भविष्य के चक्कर में हम अपना वर्तमान खो रहे हैं, लेकिन मैं ही नहीं समझ पाया। हर गृहिणी की तरह उसका भी मन है कि वो अपने घर को अपने हाथों से सजाए। वो कॉलेज में लेक्चरर है, कई कार्यक्रमों में जाती रहती है, लोगों से मिलना जुलना होता है। उससे छोटे-छोटे पद पर कार्य कर रहे कर्मचारियों के पास भी गाड़ी है, अपना घर है। अमित ने भी अपनी शादी से कुछ दिनों पहले नई गाड़ी खरीद ली थी, क्योंकि वो अपनी होने वाली पत्नी को अपनी ही गाड़ी में लाना चाहता था। ऐसे में अगर रजनी गाड़ी के लिए कहती है तो इसमें क्या गलत है। मैं बहुत नासमझ हूँ जो सब जानकर भी टालता रहा। आज उसे शर्मिंदगी महसूस हो रही है, कल बच्चे को भी दिक्कत हो सकती है। मैं परिवार को उन खुशियों से दूर कर रहा हूँ जिस पर उनका पूरा हक है। भविष्य का क्या पता, हम रहें ना रहें, ये जोश रहे ना रहे। रजनी ने बहुत धैर्य दिखाया है और सालों तक अपने मन को समझाया है। आज शायद उसकी सहनशक्ति की सीमा हो गई थी जिसके कारण आज रजनी को ये कदम उठाना पड़ा। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, मुझे अपनी गलती सुधार लेनी चाहिए।”

चिराग परेशान था लेकिन आवेश में आकर कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहता था। इसलिए उसने एक गिलास पानी पिया और पार्क में अकेला ही टहलने निकल गया। आधे घण्टे बाद जब वो घर पर वापस आया तो सबसे पहले उसने १० हजार रुपए रजनी के अकाउंट में ऑनलाइन भेज दिए ताकि रास्ते में उसे कोई दिक्कत न हो। इसके बाद उसने रजनी की पसंद वाली कार बुक करने का निर्णय लिया। रात के १० बजने वाले थे, शोरूम ७ बजे ही बंद हो चुके थे। इसलिए उसने अपने मित्र रत्नेश को फोन लगाया जो उस कार की कंपनी में मैनेजर था। रत्नेश ने बताया कि वो कार पास के शोरूम में उपलब्ध है और एक दो दिन में मिल सकती है। चिराग ने बिना देर किए बुकिंग की राशि रत्नेश को ऑनलाइन भेज दिया। कुछ ही देर में रत्नेश ने पता करके बताया कि सब कागज पूरा करके कार अगले दिन ही 3 बजे तक मिल जायेगी। ये जानकर चिराग ने थोड़ा हल्का महसूस किया लेकिन उसे रजनी और बच्चे की बहुत चिंता हो रही थी। एक दो जगह और बात करने के बाद उसने रजनी को एसएमएस भेजा “तुम्हारी नाराज़गी और तकलीफ का अंदाज़ा है मुझे। तुम सही हो, बस अपना और कुशल का ध्यान रखना। सब अच्छा होगा।” परिवार के बिना चिराग को बहुत अकेलापन लग रहा था और उसका सारा ध्यान फोन पर था कि कब रजनी की कॉल या मैसेज आएगा।

उधर थोड़ी देर बाद रजनी आगरा पहुँच गई और जब वो अपने मायके पहुँची तो उसके माता पिता, भैया और भाभी सब सरप्राइज़ हो गए। भाई प्रज्वल ने कहा,”रजनी, एक फोन कर देती तो मैं कार से लेने आ जाता।” रजनी ने कुछ नहीं बोला। काफी देर तक जब चिराग नहीं आया तो उसकी भाभी कविता ने कहा, “लगता है चिराग जी इससे भी बड़ा कोई सरप्राइज़ देने वाले हैं”। रजनी ने दबी आवाज में कहा कि वो कुशल के साथ आई है और चिराग दिल्ली में है। रजनी के पिता को तुरंत अंदाज़ा लग गया कि शायद कोई बात हुई है। उन्होंने बहू से कहा, “अरे, सब अभी पूछ लोगी या कुछ चाय पानी भी कराओगी।” रजनी ने हल्का नाश्ता किया और अपने कमरे में आ गई। उसका गुस्सा शांत हो चुका था और अब उसे ग्लानि होने लगी। जबसे उसने चिराग का संदेश पढ़ा था, उसका मन विचलित हो रहा था। ऐसा कदम उठाना उसके लिए आसान नहीं था लेकिन आज वो सम्हाल नहीं पाई। मन ही मन सोचने लगी, “आज भी खुद को समझा लेती तो सारा परिवार इतना परेशान ना होता। आख़िर इतना गुस्सा मुझे कैसे आ गया। पता नहीं चिराग के मन पर क्या बीत रही होगी।” उसने चिराग को काल किया और रुंधे हुए गले से बोली, “चिराग मैं आज सम्हाल नहीं पाई, इसलिए ये गलती हो गई। मुझे तुमसे बात करनी चाहिए थी और बिना बताए घर से नहीं निकलना चाहिए था। बड़ी गलती हो गई, सॉरी।” उधर से चिराग बोला, “तुम बिलकुल परेशान मत हो और कुछ भी मत सोचो। मैं ठीक हूँ और सब ठीक हो जायेगा। हो सके तो मुझे भी माफ कर दो। रात बहुत हो गई है, बिना किसी चिंता के सो जाओ। कल बात करेंगे।”

कॉल खत्म होने के बाद रजनी मोबाइल में चिराग की फोटो एकटक देखते हुए सोचने लगी, “चिराग इतनी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर है, लेकिन उसका स्वभाव और जीवन शैली इतनी सरल है कि अक्सर भ्रम हो जाता है कि मैंने शायद किसी संत से शादी कर ली है। वैसे चिराग के इसी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर तो मैंने शादी के लिए हाँ बोला था, तो आज उसके इस व्यवहार से मैं इतना परेशान क्यों हूँ? शायद मेरी ही गलती है जो मैं भूल गई कि चिराग के संस्कार और मूल्य बहुत गहरे हैं। अंदाज़ा नहीं था कि इतने साल बाद भी उसके विचार वैसे ही अडिग रहेंगे। उसके हिसाब से हमारे पास जो भी है, पर्याप्त है और जीवन में कोई कमी नहीं है। उसे किराए के मकान में रहने से कोई दिक्कत नहीं है इसीलिए शायद अपना घर लेने की बात उसके मन में आती ही नहीं। गाड़ी घोड़े का भी कोई शौक नहीं है। आज भी उसे नए कपड़े, घड़ी, जूते खरीदने में कुछ खास रुचि नहीं है। एक ड्रेस कई कार्यक्रमों में पहनने से उसे कोई दिक्कत नहीं। वो कहता है कि उसे रोज साफ कपड़ों की जरूरत है, ना कि नए कपड़ों की। उसके जूनियर खूब बन-ठन के रहते हैं लेकिन इन बातों पर उसका ध्यान ही नहीं जाता। उसे ना ही किसी की चमक-दमक से दिक्कत होती है और न ही किसी के अभाव को देखकर बड़प्पन का आभास होता है। थाली में भोजन छोड़ना और पानी की बर्बादी करना उसे बहुत खराब लगता है। वो बेटे कुशल को भी यही समझाता है कि खाना थोड़ा-थोड़ा लो, चाहे कई बार लो लेकिन बर्बाद न करो।”
शिक्षिका होने के कारण रजनी के मन में स्थिति का तुलनात्मक और तथ्यात्मक मंथन शुरू हो गया, “चिराग रोज 10 से 12 घंटे काम करता है लेकिन खुश रहता है और कभी कोई शिकायत नहीं करता। उसे कंजूस नहीं कह सकते क्योंकि परिवार की जरूरतों को वो खूब बढ़-चढ़ कर पूरा करता है, वो भी बिना किसी सवाल जवाब के। ऐसा भी नहीं है कि वो अपनी इच्छाएं दबाता है या सादगी का दिखावा करता है। वो सहज रूप से ऐसा ही है। उसने मुझे अपनी तनख्वाह अपने हिसाब से खर्च करने की पूरी आजादी दे रखी है। फिर दिक्कत कहाँ है? क्या चिराग को बदलने की जरूरत है? क्या परिवार को सच में कोई कमी है? क्या हम सच में किसी अभाव में है या मैं दूसरों को देखकर प्रभावित हो गई हूँ?” यही सब सोचते सोचते, उसकी आँख लग गई।

अगले दिन सबने ढेर सारी बातें की और बच्चों ने भी खूब मस्ती की। रजनी ने भी अपने आगरा आने की वजह बताई। लेकिन उसकी आवाज में पछतावे की साफ झलक थी। वो बोली, “आप सबके साथ बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन चिराग की कमी है। मैं कल वापस जाना चाहती हूँ।” इस पर भाई प्रज्वल ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा,”बेचारे चिराग को शादी के इतने सालों बाद पहली बार बीवी से आजादी मिली है। अब कुछ दिन उसे आराम से जी लेने दो।” इस पर पिताजी बोले, “चिराग की आजादी देखकर जलन हो रही है। सोच रहा हूँ मैं भी कहीं घूम आऊं।” कविता भी बहुत मजाकिया थी। वो तुरंत बोली, “पापाजी आप प्रज्वल को साथ ले जाइएगा, वरना इनके छप्पन भोग बनाते बनाते हमारी हालत खराब हो जायेगी। आख़िर मुझे और मम्मीजी को भी फ़ुर्सत मिलनी चाहिए ना।” सब खूब ठहाके मारकर हँसने लगे। तभी कविता ने रजनी से कहा, “मेरे कहने से बस एक और दिन रुक जाइए। हम सब मथुरा वृंदावन घूमने चलते हैं। अगली बार पता नहीं कितने दिनों बाद मौका मिले।” सभी ने कविता की बात का समर्थन किया और रजनी को मना लिया।

अगली सुबह सब लोग मथुरा जाने के लिए तैयार होने लगे। रजनी ने कविता से कहा, “भाभी, हम सब एक ही कार में नहीं आ पाएंगे। हमें एक और गाड़ी बुक कर लेनी चाहिए।” कविता मुस्कुराकर बोली, “हमने पहले ही गाड़ी बुक कर दी है। ड्राइवर हमारी जान पहचान के ही हैं और उनकी गाड़ी भी बिलकुल नई है।” रजनी ने कविता की तारीफ करते हुए बोला, “वाह भाभी, आप तो गजब की प्लानर निकलीं।” इस पर कविता ने मजाकिया अंदाज में रजनी से आँख मारते हुए कहा, “अरे वो बहुत हैंडसम है। मैं तो उसी की गाड़ी में बैठूंगी और तुम्हारे भैया की गाड़ी में पापा मम्मी को भेज दूंगी।” ये सुनकर रजनी की हँसी निकल पड़ी। लेकिन वो ये देखकर हैरान रह गई जब कविता ने सच में उसे कुशल के साथ नई गाड़ी में बैठाया और खुद जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ गई। उसके माता-पिता को प्रज्वल की गाड़ी में ही बैठना पड़ा। लेकिन सब काफी खुश थे। ड्राइवर को देखकर रजनी को थोड़ा अजीब लगा। उसके ब्रांडेड कपडे, हाथ में ब्रेसलेट, लेटेस्ट हेयरस्टाइल और चेहरे पर काला चश्मा देखकर ऐसा लग रहा था जैसे घूमने के लिए वो उनसे भी ज्यादा एक्साइटेड है।

रास्ते भर कविता मौज मस्ती और मजाक करती रही लेकिन ड्राइवर उसका जवाब नहीं देता था, बस थोड़ा मुस्कुरा देता था। रजनी को अच्छा लगा कि वो अपना ध्यान गाड़ी चलाने में लगा रहा था। कुछ देर बाद कविता ड्राइवर से बोली, “आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। आपको मेरे मजाक समझ में नहीं आ रहे या पसंद नहीं आ रहे हैं? अगर मेरी शकल अच्छी नहीं लग रही तो पीछे बैठी मैडम को आगे भेज दूँ।” ड्राइवर बिना कुछ बोले गाड़ी चलाता रहा लेकिन रजनी बुरी तरह झेंप गई। वो सोचने लगी कि आज कविता को हो क्या गया है? उसे थोड़ा गुस्सा आया लेकिन उसने सधे हुए अंदाज में कहा, “भाभी मजाक कर करके आप थक गई होंगी, कुछ देर आराम से बैठिए और गाने चला दीजिए।” कविता ने मुस्कुराकर ड्राइवर से कहा, “कुछ बढ़िया रोमांटिक गाने हो जाएँ।” ड्राइवर ने तुरंत गाने चला दिए। कविता का ध्यान गानों पर बिलकुल नहीं था, उसे तो बस मस्ती-मजाक सूझ रहा था। लेकिन रजनी गानों में खो गई, क्योंकि एक के बाद एक उसकी पसंद के ही गाने चल रहे थे। मथुरा पहुँचकर जब सब लोग गाड़ी से उतरे तो रजनी बोली, “आपके गानों का कलेक्शन बहुत अच्छा है।” इस पर ड्राइवर बोला,”जी मैडम सब आपके लिए ही है। आपको अच्छा लगा तो वापसी में आगे की सीट पर ही बैठिएगा। मैं तो कहता हूँ कि दिल्ली तक आप इसी गाड़ी में मेरे साथ चलिए।” रजनी बिलकुल सन्न रह गई और उसे कविता का सारा नाटक समझने में बिलकुल देर नहीं लगी। बेटा कुशल भी चौंक गया और जब चिराग ने अपनी नकली दाढ़ी मूछें निकाली तो वो खुशी के मारे उससे लिपट गया। पीछे से प्रज्वल और माता-पिता भी आ गए। कुछ देर के लिए रजनी गहरी सोच में चली गयी, तो चिराग उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला, “कुछ भी मत सोचो, सब ठीक है।” कविता बोली, “आप तो बस ये बताओ कि नए अवतार में हमारे हैंडसम जीजा कैसे लग रहे हैं?” सब खूब ठहाके मारके हँसने लगे। खुशी के आँसू लिए रजनी चिराग के गले लग गई और बोली, “ये सरप्राइज हमेशा याद रहेगा। थैंक यू।” सबने चारों ओर से रजनी और चिराग को गले लगा लिया और सब एक सुर में बोले ,”बाँके बिहारी लाल की जय!!”

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