नींद

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ऐ नींद

कहाँ से लाऊँ तुझे,

जतन किए सभी,

किस तरह पाऊँ तुझे।

 

इंतजार तुझे किसका है,

इतना तो बता,

ढूंढती हूँ तुझको,

अब और न सता।

 

क्या भूल गई है तू,

मेरी आँखों का पता,

ये तो कह कि मुझसे,

हुई है क्या खता?

 

एक बार जो तू आए,

चैन आ जाए मुझे,

सपने वो ही देखे,

जो नित पाए तुझे।

 

तू भी अपने मन की है,

ऐसे न आएगी,

जतन करवाकर सारे,

पहले खूब सताएगी।

 

फिर धीमे से सपनों की,

हल्की चादर उड़ाएगी ,

अनदेखी दुनिया की,

जी भर के सैर कराएगी।

 

एक नन्हा सा सपना तू,

इन पलकों को भी दे जा,

बाहों को थाम के मेरी,

आगोश में अपनी ले जा।

 

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