गजब हुआ लॉकडाउन ये अब तो,
घर में सब हो गए हैं बंद,
सड़कें सूनी गलियां सूनी,
कॉलेज दफ्तर स्कूल भी बंद,
बच्चे घर में ऊधम मचाते,
नित नई फ़रमाइश बताते,
दिन भर होता काम ही काम,
मिलता नहीं कहीं आराम,
क्या सोम क्या रवि या मंगल,
हर दिन हो गए एक समान,
सब कुछ बंद पड़ा है फिर भी,
बंद कहाँ हैं घर के काम?
थक कर मैं भी चूर हो गयी,
अपना आपा भी मैं खो गयी,
मुझसे न हो इतना काम,
करो कोई दूसरा इंतज़ाम,
दिनभर मैं भी थक जाती हूँ,
खटती रहती रात और दिन,
हाथों हाथ सब पहुँचाती हूँ,
मुझे भी दो छुट्टी का एक दिन,
पतिदेव ने सुनी जब बात मेरी,
पड़ गए उनके माथे पर बल,
सोचा करना होगा अब तो,
इस समस्या का कुछ हल,
स्नेह से मुझे फिर पास बिठाया,
माथा फिर मेरा सहलाया,
बोले तुम नाराज़ नहीं हो,
बैठो ठंडा पानी पी लो,
देखो सूरज चाँद सितारे,
हरदम लगते प्यारे-प्यारे,
कभी नहीं ये छुट्टी लेते,
हरदम अपना धर्म निभाते,
तुम भी सूरज जैसी उजली,
घर को रौशन करती हो,
चंदा जैसी शीतलता से,
सबके मन को हरती हो,
खफ़ा हुई जो हम सब से तुम,
घर सूना हो जाएगा,
तुम बिन प्रिये! ये घर कैसे,
फिर एक मंदिर कहलायेगा,
बातें इनकी सुनकर मेरा,
मन आनंदित हो चला,
इतनी सुंदर बातें करना,
आयी कहाँ से इन्हें भला!
मन को थोड़ी राहत आ गयी,
झट से उठी और चाय बना दी,
पर मन ही मन सोचा मैंने,
मैं मूरख फिर बात में आ गयी,
पतिदेव ने राहत की सांस ली,
युक्ति उनकी काम कर गई,
बिगुल बजा था युद्ध का लेकिन,
जंग बिना ही जंग जीत ली।