हाँ मैं एक वृक्ष हूँ

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शहर हो या गाँव हो, धूप हो या छाँव हो,

हूँ वहीं खड़ा हुआ, हाँ मैं एक वृक्ष हूँ,

 

सींचा किसी ने मुझे खून और पसीने से,

रात और दिन हैं क्या, साल और महीने से,

बाहें फैलाये हुए आज मैं अडिग खड़ा,

कर्म का ही फल बना, हाँ मैं एक वृक्ष हूँ,

 

डेरा हूँ पंछियों का, आसरा मैं पंथियों का,

फूल फल समेटे हुए, प्राणवायु देते हुए,

ताप कम कराया मैंने, बादल बरसाया मैंने,

औषधि की खान देता, हाँ मैं एक वृक्ष हूँ,

 

पूजते कभी हो मुझे, मिन्नतें भी माँगते

काटने से फिर क्यों मुझे, हाथ नहीं काँपते,

नष्ट किया वास तुमने, नन्हे परिंदों का,

काट कर मुझे बनाया, घर अपने बंदों का,

 

काटते हो मुझको जैसे, काटते हो पीढ़ियाँ,

अंत में बचेगा क्या, बस बचेंगी कौड़ियाँ,

वक़्त है संभल जा प्यारे, वरना पछतायेगा,

धन दौलत और रुतबा, काम कुछ न आएगा,

 

बात तुझको मैं बताता, राह तुझको मैं दिखता,

आज भी हूँ संग तेरे, हाँ मैं एक वृक्ष हूँ।

 

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