हाँ, मैं एक पिता हूँ,
सब कहते हैं कि मैं सख़्त बड़ा हूँ,
सही गलत में फर्क मैं ही बताता हूँ,
बच्चों को डांट मैं ही लगाता हूँ,
लेकिन जब बच्चा नाराज़ हो तो,
चुपके से मैं भी उसे मनाता हूँ,
मुझे ये कहने में ज़रा भी शर्म नहीं,
कि दिल मेरा भी कमजोर होता है,
परिवार के लिए ये भी रोता है,
आँसू बस माँ की धरोहर नहीं,
एक पिता भी कम बेबस नहीं होता है,
एक बेटा भी हूँ और एक पति भी,
मुझ पर हैं जिम्मेदारियां बड़ी,
परिवार को बांधने की मैं हूँ कड़ी,
सबकी उम्मीदों को पूरा करना,
आसान नहीं, चुनौती है बड़ी,
बच्चे बड़े हुए पर मैं तो हूँ वही,
बेटे को आने में देर हो जाये तो,
दरवाजे की ओर निगाहें जमाता हूँ,
दस जगह फ़ोन मैं ही घुमाता हूँ,
घर जब वो आये तो डाँट भी लगाता हूँ,
नन्ही-सी गुड़िया को गोद में घुमाये,
इच्छायें करी पूरी जो भी वो बताये,
कलेजा है फटता जब छोड़ के वो जाए,
एक पल में ही वो कैसे परायी कहलाये?
दुनिया से लड़ जाऊं उसपे आँच कुछ न आये,
गलती हो बेटे की तो भी मैं ही पछताता हूँ,
मनाने को उसको सब तरीके अपनाता हूँ,
बेरुखी को उसकी न दिल से लगाता हूँ,
दिल में ज़ख्म, फिर भी दुआ ही लुटाता हूँ,
हाल कोई पूछे सब ख़ैरियत बताता हूँ,
पिता हूँ पिता का फर्ज निभाता हूँ,
क्योंकि, मैं एक पिता हूँ।।