बोलने वाली औरतें

poem on confident woman

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बोलने वाली औरतें सबको चुभतीं हैं,

चुप रहने वाली सबको हैं भाती,

सच कहने वाली किसी को पसंद नहीं,

सब सहने वाली दिल हैं लुभातीं ।

 

 

पैर छूने वाली सबकी पसंद हैं,

पैरों पे खड़ी होने वाली अभिमानी कहलातीं,

गलत बात जो सुनें तो सहनशीलता-की मूरत,

गलत बात पे टोके तो बदतमीज़ कहलातीं ।

 

 

तन-मन-धन से जो करें, तो सु-गृहणी,

अपने बारे में सोचें तो स्वार्थी कहलातीं,

सम्मान सबका करती रहें तो ठीक,

खुद के आत्म-सम्मान को दाँव पे लगातीं ।

 

 

भरोसा सबका जीतने के लिए दिन-रात एक करतीं,

भरोसे के लायक फिर भी न कहलातीं,

कौन सा घर ‘उसका’, ये आज भी एक प्रश्न है,

चाहे जहाँ भी रहें, घर को ‘घर’ तो वही हैं बनातीं ।।

 

 

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