बोलने वाली औरतें सबको चुभतीं हैं,
चुप रहने वाली सबको हैं भाती,
सच कहने वाली किसी को पसंद नहीं,
सब सहने वाली दिल हैं लुभातीं ।
पैर छूने वाली सबकी पसंद हैं,
पैरों पे खड़ी होने वाली अभिमानी कहलातीं,
गलत बात जो सुनें तो सहनशीलता-की मूरत,
गलत बात पे टोके तो बदतमीज़ कहलातीं ।
तन-मन-धन से जो करें, तो सु-गृहणी,
अपने बारे में सोचें तो स्वार्थी कहलातीं,
सम्मान सबका करती रहें तो ठीक,
खुद के आत्म-सम्मान को दाँव पे लगातीं ।
भरोसा सबका जीतने के लिए दिन-रात एक करतीं,
भरोसे के लायक फिर भी न कहलातीं,
कौन सा घर ‘उसका’, ये आज भी एक प्रश्न है,
चाहे जहाँ भी रहें, घर को ‘घर’ तो वही हैं बनातीं ।।