अम्मा की अलमारी के पास जाना, मतलब अम्मा की डाँट सुनना। सविता जबसे इस घर में आई थी तो बस यही जाना था कि अम्मा की अलमारी या बक्से के पास गलती से भी नहीं जाना है और न ही उसके बारे में कोई बात करनी है। अम्मा अक्सर अपनी अलमारी के पास बैठ कर अपनी चीजों को सहेजते हुए दिखाई देती थीं। वो वहां बैठ कर क्या करती थीं ये कोई पूछता नहीं था। लेकिन कभी-कभी जब उनका दिल करता तो अपनी पुरानी यादों को या कोई कीमती ज़ेवर निकाल कर दिखातीं, कि ये फलां-फलां ने उस मौके पर दिया था, या ये बहुत साल पहले मात्र चालीस रुपए का खरीदा था । उनमें से कई चीज़ें तो सचमुच मोहक होती थीं, तो कुछ का समझ नहीं आता था कि अम्मा ने उसको अपनी अलमारी में क्यों सहेज कर रखा है।
अम्मा अलमारी की चाभी हमेशा अपने बटुए में रखतीं थीं और वो बटुआ उनके तकिए के नीचे। उनके अलावा किसी और को उस अलमारी के पास जाने में संकोच होता था। एक बार की बात है, अम्मा अपनी अलमारी खोल कर बैठी थीं और सविता किसी काम से उधर से निकली, तो उन्होंने अलमारी का एक पल्ला बंद करके अपनी आड़ से उसे ऐसे छुपाया कि मानो किसी गड़े हुए खज़ाने को उसने देख लिया हो। सविता को बहुत ही अटपटा लगा, और उस दिन से उसने उस तरफ से गुजरना ही बंद कर दिया।
आज अम्मा पंचतत्व में विलीन हो चुकी हैं, लेकिन उनके जाने के बाद उनकी धरोहर, जिसमें थे कुछ कीमती ज़ेवर, कुछ खाली बटुए, न्योते में मिली साड़ियां और स्टील के टिफिन, कुछ सुंदर चूड़ी के जोड़े, कुछ खाली पन्नियां, रूमाल में बँधे मन्नत के पैसे, गाँव से मिले हाथ पंखे और डलिया, नवरात्र में चढ़ाई चूड़ी, आलता और सिंदूर, पुड़िया में बँधी इलाइची और न जाने क्या क्या, ये सब वीरान से पड़े अपने अस्तित्व को खोज रहे हैं। अम्मा ने अपनी यादों के पिटारे को हमेशा अपनी मुट्ठी में बंद करके रखा। न जाने कौन सा भय था उन्हें कि कभी भी अपना दिल खोल कर न दिखा पाईं। पुरानी चली आ रही रूढ़िवादी विचारधारा में खुद को इतना उलझा के रखा कि प्रेम बाँटने में उनका हाथ हमेशा तंग ही रहा।
आज उनके जाने के काफी समय बाद सविता की नज़र उनके बक्से पर पड़ी। उसने हिम्मत करके उसे खोलना चाहा, लेकिन उसे ऐसा लगा मानो अम्मा दूर से उसे देख रही हैं और नाराज़ हो रहीं हैं। उसके बाद सविता की हिम्मत ही न हुई उस बक्से के पास जाने की। उसने उसे पहले की ही तरह दीवार के कोने से लगा दिया। आज अम्मा की धरोहर शायद इस इंतजार में है कि फिर से किसी हाथ की छुअन उसको नसीब होगी। लेकिन ये भी एक कटु सत्य है कि जब मनुष्य ही नश्वर है तो ये सांसारिक वस्तुएं कब तक टिकेंगी? क्या मनुष्य के अस्तित्व से ज्यादा इनका अस्तित्व है? क्या ये वस्तुएं मनुष्य की भावनाओं से ज्यादा कीमती हैं?
सविता का मन आज सब कुछ पाकर भी विरक्त है। जो जिसका था वो उसके साथ नहीं गया, और जिसको मिलेगा उसके साथ भी न जायेगा। परंतु जीवन भर हम इन नश्वर वस्तुओं को सीने से लगाए बैठे रहते हैं। इन्हीं के कारण रिश्ते सिमट के रह जाते हैं और न जाने कितनों की भावनाएं आहत होती हैं। वो नश्वर वस्तुएं जो अंततः किसी की न हो पाएंगी, परंतु उनके कारण प्रेम की अभिव्यक्ति अधूरी रह जायेगी।