गज़ब खेल संसार में फैला,
हाथ मोबाइल जेब में ढेला,
दुनिया से जुड़ने की होड़ है,
फिर भी क्यूँ रह गया अकेला!
मित्र सैकड़ों कहने को पर,
हाल नहीं पूछें प्रतिवेशी,
दर्शन दूर सुहावन लागे,
ये तो बस है रैन-बसेरा,
साम-दाम से, छल से बल से,
प्रज्ञा को चाहे हर कोई,
कलयुग की शिक्षा है ऐसी,
तमस घना है दूर सवेरा,
मात-पिता, भाई और बहना,
खास दिवस हैं याद ये आते,
बाट जोहती माता बैठी,
कब आएगा लाल वो मेरा,
झेल रहा कबसे ये बाल-मन,
पग-पग थोपी जाती इच्छा,
सर्वश्रेष्ठ की दौड़ में बेशक,
बच्चा रह जायेगा अकेला,
मित्र-मित्र बोले हर कोई,
अर्थ जानते बिरले ही हैं,
पीछे पीठ छुरा घोंपे जो,
मित्र बड़ा है ये अलबेला!
देख जिधर भी नज़र उठा के,
विस्मय भरा हुआ संसार,
भिन्न-भिन्न के करतब होते,
अजब-गजब दुनिया का मेला।