फिर मिलेंगे

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रोज की तरह आज भी संदीप, किशन और मोहित बड़ी नहर के उस पार खेलने और आनंद लेने निकले थे। नहर पर बना पुल गाँव के सभी युवाओं को बहुत लुभाता था। लेकिन आज मौसम अच्छा नहीं था इसलिए तीनों ने निर्णय लिया कि अधिक देर तक नहीं रुकेंगे। खेतों से होते हुए कुछ दूर जाकर तीनों मित्र सीढ़ीनुमा चबूतरे पर बैठ गए, जो उनका प्रिय स्थान था। ऊंचाई पर होने के कारण वहाँ से दूर तक दिखाई देता था। वर्षा के कारण आज तीनों मित्र, प्रतिदिन जितना आनंद नहीं उठा पा रहे थे। वर्षा हो रही थी इसलिए जलभराव होना स्वाभाविक था लेकिन मोहित ने ध्यान से देखा तो पानी कुछ अधिक ही दिख रहा था। उसने तुरंत अनुमान लगा लिया कि बांध से पानी छोड़ा जा रहा है। समय की गंभीरता को भांपते हुए उसने संदीप और किशन से शीघ्रता से वापस चलने को कहा। 

संदीप किशन के साथ वर्षा के दृश्य अपने नए मोबाइल में ले रहा था। मोहित ने तेज स्वर में जब संदीप और किशन को आवाज दी तो उनका ध्यान फोन से हटा। उन्होंने देखा कि सच में पानी बढ़ रहा था। अपने फोन और पैसों को वर्षा से बचाने के लिए संदीप ने अपनी जेब से पॉलीथिन का एक थैला निकाला और अपना सामान उसमें रख दिया। उसने मोहित और किशन से भी उनका सामान मांगा। अचानक उन्होंने देखा कि तेज रोशनी के साथ एक खेत में आकर बिजली गिरी। खेत दूर था लेकिन तीनों आकाशीय बिजली को देखकर सहम गये। कुछ क्षणों बाद जब उसी बिजली की तेज कड़कड़ाती आवाज आई, तो डर के मारे तीनों पुल की तरफ तेजी से भागे। 

नहर अधिक दूर नहीं थी, लेकिन डर के कारण उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे मीलों की दूरी तय करनी है। तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर खेतों से होते हुए नहर तक पहुँच गए। उन्होंने देखा कि नहर पानी से लबालब भर गई थी। बिना देर किए उन्होंने पचास मीटर लंबे पुल को भागकर पार कर लिया। तीनों दौड़कर गाँव के पास आ गए। वो जगह कुछ ऊंचाई पर थी। उन्होंने राहत की सांस ली और जाकर मिट्टी के एक ठीहे पर बैठ गए। वहाँ पहले से गाँव के अन्य लोग खड़े थे। कुछ लोगों ने उन्हें प्यार से समझाया कि ऐसे मौसम में नहर के पास नहीं जाना चाहिए परन्तु वहाँ खड़े बुजुर्गों ने तीनों को जमकर डाँट लगायी। तीनों ने चुपचाप सबकी बात सुन ली और अपने घर की ओर बढ़ गए। तभी मोहित के घर से फोन आने लगा। 

मोहित ने फोन पर अपनी माँ से बताना चाहा कि वह अपने दोस्तों के साथ है और जल्द ही घर आ जायेगा। लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले ही फोन में पानी चला गया और वो बंद हो गया। मोहित को देखकर संदीप को अपना मोबाइल याद आया। उसने अपनी जेब में हाथ डाला तो याद आया वो अपना फोन नहर पार चबूतरे पर ही भूल आया है। वह बहुत घबरा गया क्योंकि उसके पिताजी ने कई माह पैसे जमा करने के बाद उसे वो फोन दिलाया था। उसने दोस्तों से कहा कि तुम लोग यहीं रुको मैं जल्दी से अपना फोन लेकर आता हूँ। मोहित और किशन ने नहर की तरफ देखा तो पानी पुल के बराबर आ चुका था। दोनों ने संदीप को मना किया और संकट से अवगत कराया। 

संदीप के मन में मोबाइल खो जाने का डर था, इसलिए उसने फोन वापस लाने का निर्णय किया। वो पुल की तरफ बढ़ने लगा तो मोहित और किशन भी दोस्ती निभाने के लिए उसके साथ हो लिए। तीनों को फिर से पुल की तरफ जाते देख गाँव के लोग चिल्लाने लगे और उन्हें तुरंत वापस आने को बोलने लगे। कुछ लोग उनको रोकने के लिए उनके पीछे दौड़े। थोड़ी ही दूर जाने के बाद उन्होंने देखा कि पानी पुल की सड़क के ऊपर बह रहा था और पुल पर अब केवल दोनों ओर लगी लोहे की ग्रिल ही दिख रही थी। ये दृश्य देखकर मोहित और किशन भयभीत हो गए लेकिन संदीप को मोबाइल वापस लाने की धुन सवार थी। दोनो ने संदीप को आगे जाने से मना किया और समझाया कि पानी कम होने पर मोबाइल ले लेंगे। 

संदीप ने कहा तुम लोग वापस जाओ मैं जल्दी से फोन लेकर आ जाऊंगा। यह कहकर संदीप बिना पीछे मुड़े पुल की ओर दौड़ पड़ा। चबूतरे के पास पहुँचकर जब संदीप ने देखा कि उसका मोबाइल सुरक्षित रखा है तो वो बहुत खुश हुआ। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने जग को जीत लिया हो। अपनी विजय को दर्शाने के लिए वह चबूतरे पर खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथ हवा में उठाकर गाँव वालों को संकेत करने लगा। लेकिन कोई उसे उत्तर नहीं दे रहा था। अचानक उसे सूदूर के दृश्य और ध्वनियां दिखाई और सुनाई देने लगीं। उसने अपने गाँव की तरफ देखा तो वहाँ भगदड़ मच गई थी उसके पिता दहाड़ मारकर रो रहे थे और गाँव वाले उन्हें पुल की तरफ जाने से रोक रहे थे। 

उसकी माँ बेहोश पड़ी थीं जिन्हें गाँव की अन्य महिलाएं नम आंखों के साथ संभाल रही थीं। मोहित और किशन भी जोर जोर से चिल्ला कर रो रहे थे। पुलिस बल और गोताखोर नाव लेकर किसी को खोज रहे थे। संदीप की दृष्टि पुल की ओर गई तो वहाँ पानी के अलावा कुछ नहीं था। पुल पानी के तेज बहाव में बह चुका था। ये सब देखकर भी संदीप के भीतर कोई मनोभाव नहीं जाग रहे थे। अपितु वह बहुत हल्का अनुभव कर रहा था और एकटक सारी घटनाएं दूर से देख रहा था। घंटों परिश्रम के बाद गोताखोरों ने एक लड़के को ढूंढ निकाला, जिसे देखने के लिए भीड़ लग गई। लड़के को देखकर गाँव वाले और अधिक विलाप करने लगे। सारे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई थी। 

संदीप ने ध्यान से देखा तो स्वयं के मृत शरीर को देखकर हैरान रह गया। उसने पॉलिथीन में रखे मोबाइल को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे हिला भी नहीं पाया। एक हल्की सी मुस्कान लिए संदीप की आत्मा ने अपने माता-पिता मित्रों और जानने वालों को प्रणाम किया और उनसे कहा कि हमारा साथ यहीं तक था, फिर मिलेंगे।

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