सन्डे

sunday-story on women daily life

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“मम्मा.. आज sunday है, आज तो कुछ अच्छा बनना ही चाहिए”

सुबह-सुबह मेरी 8 साल की बेटी ने जैसे ही अपनी फरमाइश सुनाई, मेरा दिमाग घूमने लगा।मुझे पता था कि उसके “अच्छे” का क्या मतलब होता है। किसके लिए क्या बनाना है इसी उधेड़बुन में लगी थी कि सासू माँ की आवाज़ आयी…”हमारे लिए कुछ सादा बनाना, रात भर पेट से बहुत परेशान रही मैं।” इतने में पतिदेव जो देर रात तक office का काम कर के उठे थे, वो भी उठ गए और बोले कि “मुझे बिल्कुल भी oily खाना मत देना।”

सबकी बातें सुनकर फिर सीधे दौड़ी किचन की तरफ। कुछ देर में अलग-अलग तरह की कुछ चीजें बनकर तैयार हुईं। बेटी को मैक्रोनी दी, 

सास-श्वसुर जी को सब्जी और रोटी, और पतिदेव को sprouts। अपनी पसंद का नाश्ता पाकर सभी लोग खुश थे। फिर मैंने अपनी नाश्ते की प्लेट लगाई, जिसमे junk से लेकर सात्विक तक सबकुछ मौजूद था, लेकिन ये बात अलग है कि दोबारा चाय और doorbell के कारण नाश्ते को भी किश्तों में ही करना पड़ा। उधर washing machine में पड़े कपड़े मेरी राह देख रहे थे। सोचा machine में कपड़े लगा ही देती हूँ, बाकी काम भी साथ-साथ चलते रहेंगे। तब तक बेटी की आवाज़ आयी, “मम्मा , कल मेरा maths का exam है आप कब पढ़ाएंगी मुझे?” मैंने भी सोचा, सही बात है, बच्चे की पढ़ाई से जरूरी कोई काम नहीं है। सारे काम छोड़कर मैं उसको पढ़ाने लगी। “अरे! ये तो मैने तुमको उसदिन सिखाया था, ये कैसे भूल गयी तुम?? अब क्या होगा तुम्हारा exam में..!”

मन ही मन में ये चिंता सताने लगी, कि बेटी के नंबर अच्छे नहीं आये तो सब क्या कहेंगे। यही सोचते-सोचते उसको पूरी जान लगा कर पढ़ाने लगी, कि तब तक देखा छोटी बेटी ने बिस्तर पर कूड़े का ढेर लगा रखा था। दिमाग गुस्से से भर गया, और सोचा कि ये गुस्सा किस पर उतारूँ… पर समझ नहीं आया; और गुस्सा-वुस्सा छोड़कर बिस्तर साफ करने लगी। दोपहर के भोजन का समय हो चला था और किचन में छोले भीगे हुए थे। सबको खाना परोसा, छोटी बेटी को खिलाया और जब तक मेरे खाने की बारी आई, सब अपना खाना खत्म कर चुके थे। ख़ैर हमने भी अपना खाना खत्म किया और चल दिये छोटी बेटी को सुलाने। सोचा उसको सुलाएंगे और खुद भी एक झपकी ले लेंगे। जैसे ही आँख लगी बेटी ने आवाज़ लगाई “मम्मा बारिश शुरू हो गयी है।”

मैं दौड़कर कपडे उठाने पहुँची तो देखा सासू माँ कपड़े हटा चुकी थीं, लेकिन नींद तो खराब हो ही चुकी थी।

खाना खाये हुए अभी ज्यादा देर तो नहीं हुई थी लेकिन मौसम ही इतना रूमानी हो चला था तो चाय तो बनती है न यार। “”चाय के साथ पकौड़े मिल जाते तो बात ही क्या थी।”” ठीक है ठीक है बनाती हूँ। मैंने सोचा कि शायद अब सबका पेट ठीक हो चुका है तभी पकौड़े की फरमाइश आयी है। पकौड़े, चाय, वाह! मज़ा आ गया!” चलो अब रात में कुछ हल्का-फुल्का बना दूँगी तो काम चल जाएगा।” यही सोच ही रही थी कि पतिदेव ने बताया कि “यार पड़ोस वाले शर्मा जी शाम को मिलने आने वाले हैं, थोड़ा इंतज़ाम कर लेना।” उफ्फ! उनको भी sunday ही मिला था क्या आने के लिए… अब क्या कर सकते हैं, किसी को मना तो नहीं कर सकते न। यही सोचकर उठी और drawing room को साफ करने लगी। जल्दी से सोफे cover और cushions जो बच्चों ने इधर उधर फेंक रखे थे, उनको सही किया और dusting करके कमरे को सुंदर बनाया। शर्मा जी और उनकी श्रीमती जी को नाश्ता पानी करवाते-करवाते घड़ी में 8 कब बज गए पता ही नहीं चला। अतिथिदेवो भवः के तहत खाने के लिए तो पूछा ही जाता है, ये बात अलग है कि उन्होंने खाने के लिए मना कर दिया।

शर्मा जी की फैमिली को आदर सहित gate तक छोड़ कर आयी फिर आते ही सोफे में गिर पड़ी। सोचा चलो अब तो सबने 2 बार नाश्ता कर लिया है, ज्यादा भूख तो किसी को नहीं होगी, ये सोच ही रही थी कि पतिदेव ने पूछा कि “रात के खाने में क्या है आज?” अब मैं क्या कहती उनसे, कि अभी तो कुछ चैन की साँसे लेना शुरू ही किया था..। पतिदेव ने मेरे मन की बात पढ़ ली शायद। सहानुभूति प्रगट करते हुए बोले, “बहुत थक गई हो न आज, मैं तो कहता हूँ जो कुछ बनाना है जल्दी से बनाकर खत्म करो और जल्दी से सो जाओ”

कहने के लिए बहुत से शब्द बाहर आने को बेचैन हो रहे थे, लेकिन मैंने उनको पानी के साथ अंदर गटक लिया और खाने में सबकी favourite मूँग की दाल और रोटी परोसते हुए सबसे पूछा कि “आप लोग और कुछ लेंगे क्या?” सभी लोग बहुत कुछ कहना चाहते थे लेकिन प्याज़ के अलावा और कोई फरमाइश नहीं आयी और सभी ने ठंडी आह भर कर गर्म-गर्म दाल पी। रसोई को समेट कर सुबह स्कूल जाने की तैयारी करके जब finally सोने को लेटी तो बच्चों की energy level अभी भी फुल था। खैर, हमने भी चादर तानी और सिरहाने रखी एक नावेल को देखकर फिर उससे वादा किया कि ‘कल तुमको जरूर पढूँगी’। पतिदेव ने भी सोते-सोते पूछा कि “बहुत दिनों से तुमने कोई कविता नहीं लिखी है, क्या बात है?” मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा कि “अब कविता नहीं, सोच रही हूँ आत्मकथा लिखना शुरू कर दूँ।।”

“कल खूब rest करूँगी, नावेल का एक chapter तो जरूर खत्म करूंगी, चेहरे पे बहुत tanning हो गयी है तो facial भी कर लूँगी, गाजे-बाजे में जंग लग रही है, थोड़ा रियाज़ भी करूंगी।”

ये सब वो बातें हैं जो मैं शनिवार की रात सोचकर सोई थी और आगे की कहानी तो आप सबको पता ही हो गयी है।

खैर ये सब तो हो न पाया और इस तरह हमने अपना sunday मनाया। अरे अब बहुत देर हो चुकी है जल्दी सोकर सुबह 5 बजे उठकर morning walk पर भी जाना है। अरे भाई 1 महीने बाद बुआ के बेटे की शादी है, उसके लिए perfect भी तो दिखना है न।। 

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