सफर – फर्श से अर्श तक

 

तुम आज बुलंदी पे जो हो,

कभी ज़मीन पर भी थे,

मत भूलो उन राहों को,

जिन पर तुम कभी चले थे,

 

थे भीड़ में शामिल तुम कभी,

कुछ पाने की जब थी ललक,

मत भूलो उसी भीड़ ने ही,

है पहुँचाया तुम्हें वहां तक,

 

थे गए हार, अश्रु अपार,

साथी न कोई, थे निराधार,

स्वाभिमान का झेल दंश,

हर पल, हर पग दुख था अपार,

 

कहना था बहुत, सुनना था बहुत,

सिर रख करके रोना था बहुत,

थक चुका हूँ मैं, अब और नहीं,

कहना था यही, पर कहा नहीं,

 

लड़ता मैं गया, चलता मैं गया,

चलते-चलते फिर जीत गया,

हाँ कहता हूँ मैं आज मगर,

नहीं रहा मेरा आसान सफर,

 

वो लोग, वो घर, वो अंधेरे रास्ते,

वो धोखा, वो मेहनत, वो काली रातें,

वो हिम्मत, वो प्यार, वो मेरे अपने,

भरोसा, वो किस्मत, वो प्यारे-से सपने,

 

सहेजे चला हूँ, समेटे चला हूँ,

मैं मेहनत से आगे निकलता चला हूँ,

नहीं साथ छोड़ा भरोसे का एक पल,

यही बात सबको बताने चला हूँ।

 

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