एक सुबह हुई बड़ी प्यारी-सी,
चहुँ ओर फैली उजियारी-सी,
कलियाँ प्यारी मुस्काती थीं,
कोयल भी राग सुनाती थी,
निर्मल शीतल थी पवन बड़ी,
दिखती हर पग हरियाली-सी,
अमृत जैसा जल बहता था,
धरती हुई मतवाली-सी,
माँ-बाप का था सम्मान बड़ा,
भाई भाई पे मरता था,
सुख-दुःख के सारे साथी थे,
परिवार संग में रहता था,
हर गली-मोहल्ले में होता,
नारी का था सम्मान बड़ा,
विपदा गर आये उस पर तो,
हर कोई उसके लिए खड़ा,
नज़रें मेरी जिस ओर पड़ें,
करुणा से हृदय छलकता था,
नहीं राग नहीं था द्वेष कहीं,
कण-कण में प्रेम ही बसता था,
छल-कपट का ना कोई साया था,
लगता जैसे सतयुग चलता,
धरती सुंदर-सी लगती थी,
ईश्वर हर घर में था बसता,
निद्रा से जब फिर आँख खुली,
पाया खुद को उसी संसार पर,
पल भर में स्वप्न हुए ओझल,
आ गयी फिर से मैं धरातल पर।